Saturday, May 17, 2025

परम पूज्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज: एक दिव्य संत जिनकी कृपा अमूल्य है

 



परम पूज्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज: एक दिव्य संत जिनकी कृपा अमूल्य है

लेखक: अनंतबोध चैतन्य | श्रेणी: संत जीवन, भारतीय अध्यात्म | भाषा: हिंदी


परिचय

भारतवर्ष की पुण्यभूमि पर समय-समय पर ऐसे दिव्य संतों का जन्म हुआ है, जिन्होंने अपने तप, त्याग और कृपा से मानवता को एक नई दिशा दी। ऐसे ही एक महान सन्यासी, परम ज्ञानी और श्रीविद्या साधक थे — परम पूज्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज। उनका जीवन स्वयं में एक संदेश था — "न कोई दिखावा, न कोई अपेक्षा — केवल सेवा, साधना और कृपा।"


शुद्ध सन्यास जीवन की मिसाल

स्वामी जी ने बाल्यकाल से ही वैराग्य की भावना को अपनाया। उन्होंने कभी गृहस्थ जीवन में प्रवेश नहीं किया। बचपन से ही उनका मन भौतिक जगत से हटकर ईश्वर, साधना और तंत्र विद्या की ओर प्रवृत्त रहा।

उनकी कृपा दृष्टि जिसने भी एक बार अनुभव की — उसका जीवन हमेशा के लिए बदल गया।


श्री यंत्र मंदिर की दिव्य स्थापना

स्वामी जी का सबसे महान और दिव्य कार्य था — श्री यंत्र मंदिर की स्थापना। यह मंदिर न केवल एक वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि यह एक जाग्रत तांत्रिक शक्तिपीठ भी है।

🔻 श्री यंत्र — माँ त्रिपुर सुंदरी का दिव्य प्रतीक

स्वामी जी की तपस्या, आंतरिक दृष्टि और माँ की अनुग्रह कृपा से यह मंदिर निर्मित हुआ, जहाँ आज भी साधकों को अकल्पनीय आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है।


कृपा और साधना का संगम

स्वामी जी के जीवन में कृपा और साधना एक-दूसरे के पूरक थे। वे कठोर अनुशासन के साथ साथ, सहज और करुणामयी भी थे। उन्होंने श्रीविद्या, कुंडलिनी योग, वेदांत और तांत्रिक उपासना के गूढ़ रहस्यों को योग्य शिष्यों में बाँटा।

उनकी कृपा से अनेक साधक आध्यात्मिक रूपांतरण के पथ पर अग्रसर हुए।


स्वामी जी के वचन

"श्रीविद्या साधना कोई साधारण मार्ग नहीं, यह देवी की कृपा और गुरु के पूर्ण आश्रय से ही सिद्ध होता है।"
"शुद्ध हृदय और अडिग निष्ठा ही साधक की सच्ची पूँजी है।"


देह त्याग — एक लीला, न अंत

स्वामी विश्वदेवानंद जी ने एकांत साधना में मौनावस्था में देह त्याग किया। उन्होंने मृत्यु को भी एक लीला की तरह जिया — जैसे कोई योगी शरीर बदलता है। उनकी कृपा आज भी भक्तों, शिष्यों और साधकों पर उसी तरह बनी हुई है।


श्रद्धांजलि और नमन

हम सब स्वामी जी के चरणों में कोटिशः नमन करते हैं।
उनकी कृपा, उनका ज्ञान और उनका मौन आज भी हमारे जीवन का पथप्रदर्शक है।


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