Friday, January 29, 2021

आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन स्वामी कृष्णानन्द गिरि जी महाराज

श्रीकृष्णानंद जी महाराज 


 सर्वशास्त्रार्थनिष्णातं निगमागमबोधकम् । 
 श्रीकृष्णाख्यं यतिश्रेष्ठं प्रणमामि पुनः पुनः ॥1
 सभी शास्त्रों का अर्थ करने में निष्णात, निगम और आगम का बोध प्रदान करने वाले , यतिश्रेष्ठ, श्रीकृष्णानंद जी महाराज को मैं बार-बार प्रणाम करता हूं। 
 कृष्णानन्दं जगद्वन्द्यं कारुण्यामृतसागरम् । स्वात्मानन्दनिमग्नञ्च शिवसायुज्यसाधकम् ॥2 
 कृष्ण-आनंदी, संपूर्ण जगत् के द्वारा वंदित, करुणा रूपी अमृत के सागर , अपनी आत्मा के आनंद में डूबे हुए, शिव सायुज्य की साधना करने वाले , गुरुदेव को प्रणाम। 
 जीवितं यस्य लोकायाऽलोकायैव च जीवनम् । महादेवसमं मान्यममान्येभ्योऽपि मानदम् ॥ 3
 जिनका जीवन,संसार का कल्याण करने में लगा हुआ भी , अलौकिक गतिविधियों से पूर्ण है, ऐसे महादेव के समान सम्माननीय, अमान्य (जो गरीबी आदि के कारण समाज में अमान्य हैं) लोगों को भी सम्मान देने वाले गुरुदेव को प्रणाम। 
 हार्दं लोकहितार्थाय मनोहारि च यद्वचः । राकेन्दुरिव दिव्याय भव्यायापि नमो नमः ॥ 4 
 जिनकी वाणी , हार्दिक होती हुई भी संसार के लिए कल्याणकारी एवं मनोहर होती है, ऐसे रात्रि कालीन चंद्रमा की तरह दिव्य और भव्य गुरुदेव को बारंबार प्रणाम। 
 काषायवस्त्रभूषाय मालारुद्राक्षधारिणे । श्रीकृष्णानन्दसंज्ञाय गुरूणां गुरवे नमः। 5
 कषाय वस्त्र से विभूषित, माला और रुद्राक्ष धारण करने वाले, जो गुरुओं के भी गुरु हैं , ऐसे श्री कृष्णानंद स्वामी जी के लिए नमस्कार। 
 यतिमण्डलमार्तण्डमानन्दाम्बुधिसन्निभम् नमामि शिरसा देवं कृष्णानन्दं यतिं वरम् ॥6 
 सन्यासियों के मंडल में मार्तंड (सूर्य) की तरह देदीप्यमान,आनन्द के समुद्र के जैसी आभा वाले,श्रेष्ठ यति, कृष्णानंद स्वामी जी को मैं सिर झुका कर नमस्कार करता हूं। 
 अज्ञानतिमिरध्वंसं विप्रकुलसमुद्भवम् । नमामि मनसा देवं कृष्णानन्दं यतिं वरम् ॥7 
 अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट करने वाले , ब्राह्मण के कुल में उत्पन्न, वरणीय, देवस्वरूप, कृष्णानंद यति जी महाराज को मैं अपने मन से प्रणाम करता हूं। 
 नमः परमहंसाय सुधीभिर्वन्दिताय च । श्रीकृष्णानन्दसंज्ञाय गुरूणां गुरवे नमः ॥8 
 विद्वानों द्वारा वन्दित, परमहंस, गुरुओं के गुरु , श्रीकृष्णानंद जी महाराज को नमस्कार है। अष्टश्लोकी स्तुतिश्चैषा पुण्यानन्दविवर्धिनी । रचिता वै ह्यनन्तेन गुरुदेवप्रसादतः।। यह आठ श्लोकों की स्तुति , पुण्य और आनंद को बढ़ाने वाली है, यह अनंतबोध चैतन्य ने अपने गुरुदेव के प्रसाद से ही लिखी है।

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