Wednesday, June 4, 2025

निर्जला एकादशी 2025: आध्यात्मिक उन्नति का सबसे शुभ व्रत

 

निर्जला एकादशी 2025: आध्यात्मिक उन्नति का सबसे शुभ व्रत

  • तिथि: 6 जून, 2025 (शुक्रवार), ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि।
  • महत्व: सबसे कठिन और फलदायी एकादशी, जिसके बारे में माना जाता है कि यह सभी 24 एकादशियों के संयुक्त लाभ प्रदान करती है।
  • उत्सव: बिना पानी के पूर्ण उपवास, भगवान विष्णु की पूजा, और भारत भर में दान-पुण्य।
  • आध्यात्मिक लाभ: पापों का शुद्धिकरण, स्वास्थ्य लाभ, और समृद्धि एवं मोक्ष के लिए आशीर्वाद।

परिचय

निर्जला एकादशी, जिसे पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग में मनाई जाने वाली 24 एकादशियों में विशेष स्थान रखती है। भगवान विष्णु को समर्पित यह दिन अत्यंत भक्ति के साथ मनाया जाता है, जिसमें बिना पानी के कठोर उपवास किया जाता है, जिसके कारण इसे "निर्जला" (जल रहित) कहा जाता है। साल 2025 में निर्जला एकादशी 6 जून को मनाई जाएगी, जो भक्तों को अपने पापों को शुद्ध करने, आध्यात्मिक यात्रा को समृद्ध करने, और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने का एक गहन अवसर प्रदान करेगी।

तिथि और शुभ मुहूर्त

निर्जला एकादशी 2025 शुक्रवार, 6 जून को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दौरान मनाई जाएगी। महत्वपूर्ण समय निम्नलिखित हैं:

  • एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 जून, 2025, रात 10:02 बजे
  • एकादशी तिथि समाप्त: 6 जून, 2025, रात 11:04 बजे
  • पारणा (व्रत तोड़ने) का समय: 7 जून, 2025, सुबह 5:25 बजे से 8:09 बजे तक
  • द्वादशी तिथि समाप्त: 7 जून, 2025, रात 10:57 बजे
  • हस्त नक्षत्र: 5 जून, 2025, सुबह 3:35 बजे से 6 जून, 2025, सुबह 6:34 बजे तक
  • व्यातिपात योग: 5 जून, 2025, सुबह 9:14 बजे से 6 जून, 2025, सुबह 10:13 बजे तक

7 जून को पारणा के लिए शुभ समय का पालन करने से भक्त व्रत को सही ढंग से पूरा करते हैं, जिससे आध्यात्मिक लाभ अधिकतम होता है।

निर्जला एकादशी की कथा

निर्जला एकादशी का महत्व महाभारत से गहराई से जुड़ा है, विशेष रूप से पांडव भाई भीम से। कथा के अनुसार, पांडव और उनकी पत्नी द्रौपदी ऋषि व्यास के सुझाव पर एकादशी व्रत का पालन करते थे ताकि भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त कर समृद्धि और विजय प्राप्त करें। हालांकि, भीम, जो अपनी प्रचंड भूख के लिए जाने जाते थे, को बार-बार उपवास करना कठिन लगता था।

भीम ने व्यास जी से अपनी समस्या साझा की और उपाय मांगा। व्यास जी ने उन्हें सलाह दी कि वे केवल एक बार, निर्जला एकादशी पर कठोर व्रत करें, जिसमें भोजन और पानी दोनों का त्याग हो, और यह व्रत सभी 24 एकादशियों के संयुक्त लाभ प्रदान करेगा। भीम ने इस सलाह का पालन किया, और इस तरह यह एकादशी भीमसेनी या पांडव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह कथा भक्ति और अनुशासन पर जोर देती है, और उन लोगों के लिए एक व्यावहारिक मार्ग प्रदान करती है जो नियमित उपवास में कठिनाई महसूस करते हैं।

उत्सव और अनुष्ठान

निर्जला एकादशी पर कठोर उपवास और भगवान विष्णु की हार्दिक पूजा भारत भर में, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, और राजस्थान में की जाती है। भक्त दशमी (एकादशी से एक दिन पहले) से तैयारी शुरू करते हैं, हल्का सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं और अनाज, दालें, और कुछ सब्जियों से परहेज करते हैं।

प्रमुख अनुष्ठान:

  • पूर्ण उपवास: भक्त 6 जून की सूर्योदय से 7 जून की सूर्योदय तक भोजन और पानी दोनों का त्याग करते हैं। यह कठोर व्रत शरीर, मन, और आत्मा को शुद्ध करता है।
  • विष्णु पूजा: एक छोटा सा वेदी स्थापित करें, जिसमें भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र हो, अक्सर देवी लक्ष्मी के साथ। तुलसी के पत्ते, चंदन का लेप, फूल, फल, और धूप अर्पित करें। पूजा दीपक जलाकर और विष्णु मंत्रों के जाप से शुरू करें।
  • विष्णु सहस्रनाम और भगवद् गीता पाठ: भक्त विष्णु सहस्रनाम (विष्णु के 1000 नाम) का पाठ करते हैं और भगवद् गीता को पढ़ते या सुनते हैं ताकि उनकी भक्ति गहरी हो।
  • दान और सेवा: पानी के घड़े (विशेष रूप से गर्मियों में पंखे या छाते के साथ), भोजन, वस्त्र, और अन्य जरूरी वस्तुओं का दान करना अत्यंत पुण्यदायी माना जाता है। जून की तपती गर्मी में यात्रियों को पानी पिलाना एक आम दान कार्य है।
  • रात्रि जागरण: कई भक्त रात भर जागते हैं, कीर्तन, प्रार्थना, और ध्यान के माध्यम से भक्ति में लीन रहते हैं, भगवान विष्णु के दिव्य गुणों पर चिंतन करते हैं।
  • पारणा (व्रत तोड़ना): व्रत को द्वादशी (7 जून) पर निर्दिष्ट पारणा समय के दौरान तोड़ा जाता है, आमतौर पर पानी से शुरू करके हल्का भोजन जैसे फल या दूध से बने पदार्थों के साथ।

वृंदावन और मथुरा जैसे मंदिरों में विशेष अभिषेकम (देवता का स्नान) और शोभायात्राएँ आयोजित की जाती हैं, जो हजारों भक्तों को आकर्षित करती हैं। इस दिन का ध्यान संयम और भक्ति पर केंद्रित होता है, जो भक्तों को दिव्य के साथ गहरा संबंध स्थापित करने में मदद करता है।

पूजा के लिए मंत्र

विशिष्ट मंत्रों का जाप इस दिन की आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है:

  1. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
    यह शक्तिशाली मंत्र भगवान विष्णु का आह्वान करता है, शांति और आध्यात्मिक स्पष्टता को बढ़ावा देता है।
  2. हरे कृष्ण हरे राम मंत्र:
    हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे / हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे
    इस मंत्र का जाप माला (108 मनके) के साथ किया जाता है, जो भक्ति को गहरा करता है और भक्त को भगवान विष्णु की दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है।

भक्त एकादशी व्रत कथा का पाठ भी करते हैं, जो इस दिन के महत्व को समझाने वाली एक कथा है, और व्रत के दौरान उनके संकल्प को प्रेरित करती है।

आध्यात्मिक महत्व

निर्जला एकादशी को सभी एकादशियों में सबसे शक्तिशाली माना जाता है क्योंकि यह अपनी कठोर प्रकृति के कारण है। माना जाता है कि यह एक वर्ष में सभी 24 एकादशियों का पालन करने के संयुक्त लाभ प्रदान करती है, जिससे यह उन लोगों के लिए आदर्श है जो नियमित रूप से व्रत नहीं रख सकते। यह व्रत शरीर और मन को शुद्ध करता है, विचारों, शब्दों, और कर्मों से उत्पन्न पापों को हटाता है। यह शारीरिक स्वास्थ्य को भी बढ़ावा देता है, शरीर को डिटॉक्स करता है, पाचन में सुधार करता है, और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है—जिसे आधुनिक विज्ञान भी समर्थन करता है।

आध्यात्मिक रूप से, यह दिन भक्तों को भगवान विष्णु की दिव्य ऊर्जा के साथ संरेखित करता है, विनम्रता, धैर्य, और आत्म-अनुशासन जैसे गुणों को बढ़ावा देता है। कहा जाता है कि यह समृद्धि, शांति, और मोक्ष की ओर प्रगति लाता है। पद्म पुराण में उल्लेख है कि इस एकादशी को भक्ति के साथ पालन करने से सबसे गंभीर पाप भी मिट जाते हैं और दिव्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।

सांस्कृतिक और क्षेत्रीय उत्सव

निर्जला एकादशी भारत भर में व्यापक रूप से मनाई जाती है, विशेष रूप से उत्तर भारत में। वृंदावन में, भक्त इस्कॉन मंदिर जैसे मंदिरों में कीर्तन और भगवान कृष्ण (विष्णु का एक रूप) के दर्शन के लिए उमड़ते हैं। राजस्थान में, स्थानीय मंदिरों में सामुदायिक सभाएँ होती हैं, जिनमें सामूहिक जाप और दान अभियान शामिल होते हैं, जैसे कि जरूरतमंदों को पानी और भोजन वितरित करना। जून के चरम गर्मी के महीने में होने वाला यह त्योहार पानी से संबंधित दान के महत्व को रेखांकित करता है, जो विपरीत परिस्थितियों में करुणा का प्रतीक है।

निष्कर्ष

निर्जला एकादशी 2025, जो 6 जून को है, भगवान विष्णु के साथ संयम, भक्ति, और दान के माध्यम से जुड़ने का एक पवित्र अवसर प्रस्तुत करती है। इस कठोर व्रत का पालन करके और हार्दिक पूजा में संलग्न होकर, भक्त अपनी आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं, दिव्य आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं, और अपनी आध्यात्मिक यात्रा पर प्रगति कर सकते हैं। इस शुभ दिन को मनाते हुए, आइए हम इसके अनुशासन और भक्ति के उपदेशों को अपनाएँ ताकि धर्म के अनुरूप जीवन जी सकें। 6 जून, 2025 को निर्जला एकादशी में शामिल हों और अनंत बोध पर अधिक आध्यात्मिक जानकारियाँ प्राप्त करें।

Monday, June 2, 2025

ब्रह्मलीन स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज: आध्यात्मिक जगत के प्रकाशस्तंभ

 


ब्रह्मलीन स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज: आध्यात्मिक जगत के प्रकाशस्तंभ

आध्यात्मिकता और मानव कल्याण के क्षेत्र में स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज का नाम एक सूर्य की भांति चमकता है। उन्होंने अपने जीवन को सनातन धर्म की सेवा, वेदांत के प्रचार और विश्व शांति के लिए समर्पित कर दिया। उनके जीवन की यात्रा एक साधारण बालक से लेकर एक महान संत बनने तक की प्रेरक गाथा है, जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।

प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक रुचि

स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज का जन्म 12 दिसंबर, 1949 को उत्तर प्रदेश के कानपुर संभाग के नौगांव गांव में एक पवित्र ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम विश्वनाथ शुक्ला था, और उनका बचपन का नाम कैलाश नाथ शुक्ला था। बचपन से ही उनकी रुचि आध्यात्मिकता और धर्म की ओर थी। छोटी उम्र में ही उन्होंने वेद, उपनिषद् और अन्य धार्मिक ग्रंथों का गहन अध्ययन शुरू कर दिया था। यह अध्ययन उनके जीवन का आधार बना और उन्होंने मानवता की भलाई के लिए संन्यासी जीवन जीने का संकल्प लिया।

16 वर्ष की आयु में, उन्होंने सांसारिक जीवन को त्याग दिया और परमात्मा की खोज में अपने परिवार से संबंध तोड़कर घर छोड़ दिया। इस दौरान उनकी मुलाकात दारिया पुर गांव (नैमिषारण्य, उत्तर प्रदेश के पास) में पूज्य स्वामी सदानंद परमहंस से हुई। स्वामी सदानंद के मार्गदर्शन में उन्होंने सत्संग और विभिन्न साधनाओं में प्रवीणता हासिल की, जिसने उनकी आध्यात्मिक यात्रा को गति दी।

संन्यास और गहन साधना

सन् 1962 में स्वामी विश्वदेवानंद जी ने परम तपस्वी अनंत श्री विभूषित आचार्य महामंडलेश्वर निर्वाण पीठाधीश्वर स्वामी अतुलानंद जी से संन्यास दीक्षा ली और वे परमहंस परिव्राजकाचार्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज के नाम से जाने गए। यह दीक्षा उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था, जिसने उन्हें हिंदू धर्म की सर्वोच्च आध्यात्मिक शिक्षा—परमहंस अवस्था—तक पहुंचाया।

संन्यास के बाद, उन्होंने अहमदाबाद के सन्यास आश्रम, एलिस ब्रिज और वाराणसी के गोविंद मठ की महान परंपरा में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने अंग्रेजी में एम.ए. और दर्शन में आचार्य की उपाधि प्राप्त की, साथ ही वेद, उपनिषद्, योग और प्राचीन शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। इसके बाद, उन्होंने हिमालय, पंजाब, गुजरात के जंगलों, हरिद्वार, वाराणसी और गंगा के तट पर कई वर्षों तक कठोर साधना और तपस्या की। इस दौरान, उन्होंने लोगों की समस्याओं को समझने और अज्ञानता को दूर करने के उपाय खोजने के लिए भारत के विभिन्न पवित्र स्थानों की यात्रा की।

विश्व कल्याण और सामाजिक योगदान

स्वामी विश्वदेवानंद जी का दृष्टिकोण "वसुधैव कुटुंबकम" (विश्व एक परिवार है) की भावना पर आधारित था। इस विचार को साकार करने के लिए उन्होंने हरिद्वार में विश्व कल्याण फाउंडेशन की स्थापना की। सन् 1991 में, उन्होंने हरिद्वार के कनखल में विश्व का पहला पत्थर से बना श्री यंत्र मंदिर स्थापित किया, जो आज भी आध्यात्मिकता का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।

सन् 1985 में, हरिद्वार महाकुंभ के दौरान, सनातन धर्म के संतों और श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा ने उन्हें " निर्वाण पीठाधीश्वर " की उपाधि दी। बाद में, उन्हें आचार्य महामंडलेश्वर नियुक्त किया गया, जिसके अंतर्गत वे हरिद्वार, वाराणसी, कोलकाता और अहमदाबाद सहित विभिन्न आश्रमों के अध्यक्ष बने। इस भूमिका में, उन्होंने कई नागा संन्यासियों को दीक्षा दी और कई महामंडलेश्वर नियुक्त किए, जिनमें स्वामी जसराज पुरी (ऑस्ट्रेलिया) और ब्रह्मलीन स्वामी मार्तंड पुरी शामिल हैं।

प्रवचन और वैश्विक प्रभाव

पिछले 30 वर्षों से स्वामी विश्वदेवानंद जी सनातन धर्म के प्रचारक के रूप में प्रवचन देते रहे। उनके प्रवचन वेद, उपनिषद्, भागवत, पुराण, भगवद् गीता, रामायण और अन्य पूर्वी और पश्चिमी दर्शनों को समाहित करते थे। उनकी सरल, वैज्ञानिक और रोचक प्रस्तुति ने हजारों लोगों के जीवन को बदल दिया। वे अपने प्रवचनों में विभिन्न धर्मों के शास्त्रों से उद्धरण देते थे, जिससे ज्ञान की गहराई और व्यापकता का अनुभव होता था।

उन्होंने भारत के साथ-साथ सिंगापुर, मलेशिया, इंग्लैंड, कनाडा और अमेरिका जैसे देशों की यात्रा की, जहां उनके प्रवचनों को जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। विशेष रूप से अमेरिका में उनकी कई यात्राओं ने लोगों को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। उनके प्रवचनों में हास्य, जीवन के अनुभव और शास्त्रीय तर्कों का समावेश होता था, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था। उनकी विनम्रता और आध्यात्मिक आभा ने हर किसी को प्रभावित किया।

दर्शन और विश्व शांति के लिए योगदान

स्वामी विश्वदेवानंद जी एक महान दार्शनिक और विचारक थे। उनके लिए विज्ञान केवल भौतिक समस्याओं का समाधान था, लेकिन वे इससे आगे बढ़कर एक ऐसी दुनिया की कल्पना करते थे, जहां धर्म, विज्ञान और कला का समन्वय हो। वे विश्व को एक परिवार मानते थे और सामाजिक उत्तरदायित्व के साथ आध्यात्मिकता को जोड़ते थे।

वे विश्व हिंदू परिषद के सम्मानित सदस्य थे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कई कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मानित किए गए। उन्होंने लोगों को शांति और मोक्ष के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया, उन्हें सांसारिक मोह से दूर कर सच्चे ज्ञान की ओर ले गए। उनके मार्गदर्शन में लाखों साधकों ने आध्यात्मिक ऊर्जा और ज्ञान प्राप्त किया।

जीवन का अंत और विरासत

स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज ने अपने जीवन के अंतिम दिन हरिद्वार में बिताए, जहां वे सेवा और साधना में लीन रहे। 7 मई, 2013 को उन्होंने देह त्याग दी, लेकिन उनकी शिक्षाएं और योगदान आज भी जीवित हैं। उनके शिष्य, जैसे अनंतबोध चैतन्य, उनके संदेश को आगे बढ़ा रहे हैं।

उनके जीवन का सबसे बड़ा संदेश था कि सच्चा सुख आत्मज्ञान और सेवा में है। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। अधिक आध्यात्मिक प्रेरणा के लिए हमारे ब्लॉग https://anantbodh.blogspot.com/ पर जुड़ें।

Saturday, May 17, 2025

परम पूज्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज: एक दिव्य संत जिनकी कृपा अमूल्य है

 



परम पूज्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज: एक दिव्य संत जिनकी कृपा अमूल्य है

लेखक: अनंतबोध चैतन्य | श्रेणी: संत जीवन, भारतीय अध्यात्म | भाषा: हिंदी


परिचय

भारतवर्ष की पुण्यभूमि पर समय-समय पर ऐसे दिव्य संतों का जन्म हुआ है, जिन्होंने अपने तप, त्याग और कृपा से मानवता को एक नई दिशा दी। ऐसे ही एक महान सन्यासी, परम ज्ञानी और श्रीविद्या साधक थे — परम पूज्य स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज। उनका जीवन स्वयं में एक संदेश था — "न कोई दिखावा, न कोई अपेक्षा — केवल सेवा, साधना और कृपा।"


शुद्ध सन्यास जीवन की मिसाल

स्वामी जी ने बाल्यकाल से ही वैराग्य की भावना को अपनाया। उन्होंने कभी गृहस्थ जीवन में प्रवेश नहीं किया। बचपन से ही उनका मन भौतिक जगत से हटकर ईश्वर, साधना और तंत्र विद्या की ओर प्रवृत्त रहा।

उनकी कृपा दृष्टि जिसने भी एक बार अनुभव की — उसका जीवन हमेशा के लिए बदल गया।


श्री यंत्र मंदिर की दिव्य स्थापना

स्वामी जी का सबसे महान और दिव्य कार्य था — श्री यंत्र मंदिर की स्थापना। यह मंदिर न केवल एक वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है, बल्कि यह एक जाग्रत तांत्रिक शक्तिपीठ भी है।

🔻 श्री यंत्र — माँ त्रिपुर सुंदरी का दिव्य प्रतीक

स्वामी जी की तपस्या, आंतरिक दृष्टि और माँ की अनुग्रह कृपा से यह मंदिर निर्मित हुआ, जहाँ आज भी साधकों को अकल्पनीय आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव होता है।


कृपा और साधना का संगम

स्वामी जी के जीवन में कृपा और साधना एक-दूसरे के पूरक थे। वे कठोर अनुशासन के साथ साथ, सहज और करुणामयी भी थे। उन्होंने श्रीविद्या, कुंडलिनी योग, वेदांत और तांत्रिक उपासना के गूढ़ रहस्यों को योग्य शिष्यों में बाँटा।

उनकी कृपा से अनेक साधक आध्यात्मिक रूपांतरण के पथ पर अग्रसर हुए।


स्वामी जी के वचन

"श्रीविद्या साधना कोई साधारण मार्ग नहीं, यह देवी की कृपा और गुरु के पूर्ण आश्रय से ही सिद्ध होता है।"
"शुद्ध हृदय और अडिग निष्ठा ही साधक की सच्ची पूँजी है।"


देह त्याग — एक लीला, न अंत

स्वामी विश्वदेवानंद जी ने एकांत साधना में मौनावस्था में देह त्याग किया। उन्होंने मृत्यु को भी एक लीला की तरह जिया — जैसे कोई योगी शरीर बदलता है। उनकी कृपा आज भी भक्तों, शिष्यों और साधकों पर उसी तरह बनी हुई है।


श्रद्धांजलि और नमन

हम सब स्वामी जी के चरणों में कोटिशः नमन करते हैं।
उनकी कृपा, उनका ज्ञान और उनका मौन आज भी हमारे जीवन का पथप्रदर्शक है।


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